माँ
एक छोटा सा लफ्ज़,
पर पूरी दुनिया समेटे हुए है खुद में…
मुझे दुनिया में लायी तू,
मुझे सींचा तूने,
मुझे संवारा भी तूने ही माँ…
पहली गुरु तू ही थी माँ…
जब आँखे खुली तो सामने तू ही थी माँ…
आज भी जब सुबह आँखे खुलती है,
तो तुझे ही ढूंढती हूँ मैँ माँ…
क्यूंकि तेरी ही मुस्कराहट से तो दुनिया संवरती है माँ।
जब कभी तुझे न देखूं,
तो ऐसा वीराना सा लगता है…
तेरी उस मुस्कराहट ने तब भी दुनिया संवरी थी माँ,
आज भी संवरती है,
चाहे कितने ही गम छुपे हो उस तेरी उस मुस्कान के पीछे…
जब तू आँचल में छुपती थी,
तो दुनिया का हर डर छोटा लगता था
आज भी तू ही मेरी ढाल है,
मेरी रक्षक भी
तू ही भगवान् है मेरी, माँ।
हर मुश्किल से बचाती है तू,
तेरी गोद में सर रख के लगता है,
जैसे हर परेशानी कोसो दूर हो।
दुनिया का हर सुकून है तेरे पास माँ…
तेरी उस डाँट में भी प्यार था,
और उस मार में भी…
जब कभी तूने मुझे मारा,
तो मेरी आँख से पहले
तेरी आँखों से छलके थे आंसू माँ…
मुझे भगवान् का मतलब सिखाया मेरे भगवान् ने,
दुनिया दिखाई मेरी दुनिया ने,
तुझे से ही शुरू हो
तुझे में ही खत्म होती है दुनिया मेरी,
मेरी माँ…
मुझे कोई एक दिन नहीं चाहिए ये दिखाने के लिए
कितना पूजती हूँ तुझे माँ…
मेरे पास लफ्ज़ भी नहीं
तेरा स्वरूप ब्यान करने के लिए माँ|
न ही कोई ऐसी गुरु दक्षिणा
तेरे इस उपकार के लिए,
ये कोई ऋण नहीं है,
जो मैं अदा करना चाहूँ,
बस अपने भगवान को तुच्छ भेटं अर्पण करने का सपना है।
बस इतनी इल्तजा है उस खुदा से,
कि हर जन्म मुझे तेरी ही बेटी बनाए
(कहने को बेटियां होती तो पराई है,
पर सबसे दिल के अजीज़ भी वही होती है माँ के)
बस हर जन्म तेरे ही पास रखे मुझे,
क्यूंकि खुद को सोचना तेरे बिना,
तो सीखा ही नहीं मैंने|
दुनिया के बिना इंसान कैसे
खुद को सोचे कोई, माँ
अब तू ही बता…
मेरी माँ…